ख़ुशी आए
है स्वागत
खुली बाँहों से
पर किसी के निवालों का सौदा न हो
महल हों
मख़मली हो बिछौना जहाँ
वहाँ नींद और ख़्वाब की बात क्या
पर नींदों में, सपनों में
जो आकर चुभें
ऐसा टूटा कोई भी
घरौंदा न हो
किसी के निवालों का सौदा न हो
सजी हों महफ़िलें
और छलकते हों प्याले
भूलकर टीस हम भी
झूम लें और गा लें
पर सोया कहीं कोई भूखा न हो
कहीं कोई बरतन औंधा न हो
किसी के निवालों का सौदा न हो
हमारी भी आँखों में तैरे शरारत
सोया जो सड़कों पे बचपन न हो
हम भी करेंगे तरक़्क़ी के दावे
जो हाथों में उनके
वतन बेचने का मसौदा न हो
किसी के निवालों का सौदा न हो
-विवेक मिश्रा
Saturday, January 3, 2009
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