Sunday, January 24, 2010

इच्छा
बड़े से अहाते में
छोटी सी साईकिल से
तेज़-तेज़ चक्कर लगाता
सात साल का बच्चा
नहीं जानता कि वह
दुनिया के किस हिस्से में है

वह यह भी नहीं जानता
कि उसके सिर पर
जो नीला मैदान उल्टा लटका है
उसमें कब से चल रहा है
ये सुबह से शाम तक
चमकने वाला
बड़ा सोने का गोला

और वह यह भी नहीं जानता
कि कहाँ से आते हैं
इस नीले मैदान में
ग़ुस्से से घरघराते
मशीनी परिंदे
और गिरा जाते हैं
ग़र्म आग के गोले
उसके घर के पास

पर वह इतना जानता है
कि उसके आस-पास
बहुत कुछ मिट जाने के बाद भी
बस केवल उसी के बचे हैँ
दोनों पाँव
एक साईकिल
और उसे तेज़-तेज़ चलाने की
……………… इच्छा
तेज़-तेज़ चलाने की इच्छा।


अस्तित्व
मैं निरन्तर अस्तित्व
खोता जा रहा हूँ
मैं छोटा और छोटा
होता जा रहा हूँ

अपने क्रोध को, संत्रास को
यूँ दबाकर
मैं ख़ुद अपना
रूप बदला पा रहा हूँ

दर्पण भी हैरान है
छाया मेरी देखकर
मैं नित नए आकार
लेता जा रहा हूँ,

चुक गई संवेदना
मेरे भीतर अब बचा
कुछ भी नहीं
जो बचा बाहर कहीं
वह भी मुझको खा रहा है
मैं भी उसको खा रहा हूँ।

- विवेक मिश्र -