Saturday, January 3, 2009

अभिमान

दे रहा सागर थपेड़े
पवन कब से खटखटाती
द्वार तेरे
पर निष्ठुर शिलाओं में
कब अंकुर फूटते हैं
लहर हो या नाव हो
या कि कोई स्वप्न हो
जब भी टकराते हैं
तुमसे टूट्ते हैं
जो पानी की बौछार न हो
पवन का दुलार न हो
तो रेत में तपती हुई
चट्टान होकर क्या करोगे
कौन आ बैठेगा यहाँ पर
फिर शिलाओं का
यह अभिमान लेकर
क्या करोगे
-विवेक मिश्रा

2 comments:

  1. सीखिए

    आदतें बदलना सीखिए गिरकर संभलना सीखिये |
    जानते हैं किसी पथिक को राह नहीं दिखला पाएंगे,
    फ़िर भी अंधकार से लड़ते जुगनू की तरह जलना सीखिये.
    किसी की सुरमई आँखों में नशा बन कर छा जाना कोई हिम्मत की बात नहीं,
    किसी की बूढी आँखों में उम्मीद की रौशनी बनार पालना सीखिये.
    नफ़रत की गरम रेट कब कोई आकर ले पाई है,
    मोहब्बत की मिटटी बनकर रिश्तों के साँचो में ढलना सीखिये.
    ठन्डे पड़े खून को तो मैं लाल रंग का पानी कहता हूँ.
    भगत और आजाद के लहू की तरह उबलना सीखिये.
    जीवन में मिली हर चोट तुम्हे जीतना सिखलाएगी.
    कांटो भारी राहों पे नंगे पाऊँ चलना सीखिये.

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  2. Ye Kavita Deval Ashish ji ke kehne par aapke Blog par post kar raha hoon. Agar achchhi lage to apni Ptrikaon me ise jagah den...

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